कहानी - मकान | कथाकार - कामतानाथ
चाभी ताले में फँसा कर उसने उसे घुमाया तो उसने घूमने से कतई इनकार कर दिया। उसने दुबारा जोर लगाया परंतु कोई परिणाम नहीं निकला।…
चाभी ताले में फँसा कर उसने उसे घुमाया तो उसने घूमने से कतई इनकार कर दिया। उसने दुबारा जोर लगाया परंतु कोई परिणाम नहीं निकला।…
सूरज की किरणें आकाश में अपने पंख पसार चुकी थीं। एक किरण खिड़की पर पड़े टाट के परदे को छकाती हुई कमरे के भीतर आ गई और सामने…
वे भूली कहाँ थीं कुछ भी! रह-रहकर वही दृश्य तो उनके मन को कुरेदते रहते हैं और वे अपने-आप से ही आँखें चुराने की कोशिश में लग…
मैं अपने आधे भारतीय , आधे अमेरिकी परिवार को नये वातावरण में ढालने , की आपा–धापी और यहाँ टूटे बिखरे संबंधों को सहेजने में ब…
कोर्ट नंबर एक। बाहर-भीतर और दिनों की अपेक्षा ज़्यादा भीड़। खूब चहल-पहल। आगे की चार-पाँच पंक्तियों की कुर्सियाँ काले कोटधार…
मुकदमा दो साल तक चला। आखिर पति-पत्नी में तलाक हो गया। तलाक के पसःमंजर बहुत मामूली बातें थीं। इन मामूली बातों को बड़ी घटन…
बच्चों के लिये कॉरपोरेशन का स्कूल नजदीक ही , बगल की सँकरी और गन्दी गली से आगे था। मदन के दोनो बच्चे इसी स्कूल में पढ़ते और अ…
अस्सी बरस के खिल्लन मियाँ को जब से ये पता चला है कि श्रीनगर-मुज़्ज़फ़राबाद के बीच सरहद के आर-पार बसें चलने वाली हैं , तब स…
यह अलार्म भी अजीब है , कभी बजना नहीं भूलता। शुभि घड़ी देखती है। अभी पाँच ही बजे हैं। कुछ सोचकर उठती है , फ्रिज में से ठंडी…
मैंने बहुत सावधानी से चारों ओर देखा लेकिन मेरे सिवा वहाँ कोई नहीं था। मुझे तसल्ली हुई , जिसका कि कोई कारण नहीं था। चारों ओर …
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